Light ,Dispersion of light by Prism,Scattering of light,Interference of light Waves,Refraction of light

प्रकाश (Light)
प्रकाश ऊर्जा का वह प्रकार है जिसकी सहायता से हम वस्तु को आसानी से देख पाते हैं. अब अंधेरे में रखी हुई वस्तुएं हमें नहीं दिखाई देती जैसे ही बल्ब या मोमबत्ती जलती है तो वह प्रकाश उत्पन्न करती है और यह प्रकाश वस्तु पर आपतित होता है यानी जो प्रकाश बल्ब या मोमबत्ती द्वारा उत्पन्न होता है सबसे पहले वह वस्तु पर पड़ता है और वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आंखों पर पड़ता है
प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जो आखों को संवेदित कर वस्तुओं के रंग रूप आदि का ज्ञान कराती है। प्रकाश के सन्दर्भ में सर्वप्रथम न्यूटन ने ’कणिका सिद्धान्त’ प्रतिपादित किया था। उसके अनुसार प्रकाश छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है लेकिन बाद में हाइगेन्स ने अपने सिद्धान्त में कहा कि प्रकाश तरंगों के रूप में गमन करता है जिसकी पुष्टि यंग ने अपने व्यतिकरण प्रयोगों द्वारा की परन्तु उसके द्वारा प्रकाश वैद्युत प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकती।  बाद में सन् 1905 में आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बंडलों का समुच्चय है। इन बंडलों को फोटाॅन कहते हैं। सन् 1973 में मैक्सवेल ने बताया प्रकाश एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय तरंगे हैं परन्तु उसके द्वारा भी प्रकाश वैद्युत प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकी।
इस प्रकार से प्रकाश दो प्रकार के गुणों को प्रदर्शित करता है।
आज के समय में प्रकाश के कुछ गुणों जैसे विवर्तन, व्यतिकरण ध्रुवीकरण आदि की व्याख्या तरंग प्रकृति के आधार पर तथा कुछ गुणों जैसे प्रकाश वैद्युत प्रभाव की व्याख्या प्रकाश के आइंस्टाइन के सिद्धान्त के आधार पर की जाती है। 

प्रदीप्त वस्तुएँ :- वे वस्तुएं जो स्वयं प्रकाश उत्पन्न करती हैं। जैसे सूर्य, तारे, विद्युत वल्ब आदि।

अप्रदीप्त वस्तुएँ :- स्वयं प्रकाश उत्पन्न नहीं करती हैं। जैसे मेज, कुर्सी, दीवारें, चन्द्रमा आदि।

प्रिज्म द्वारा प्रकाश का वर्णविक्षेपण (Dispersion of light by Prism) :- 
सूर्य के प्रकाश की किरणें किसी प्रिज्म पर पड़ने के बाद सात रंगों में बट जाती हैं। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम कहतें हैं। वर्णक्रम को परदे पर लेने पर ऊपर से नीचे की ओर जो क्रम प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी तथा बैगनी। प्रिज्म द्वारा बैगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक तथा लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है क्योंकि लाल रंग के प्रकाश की तरंग दैध्र्य सबसे अधिक तथा बैगनी रंग की तरंग दैध्र्य सबसे कम होती है। बरसात के दिनों में आसमान में दिखायी देने वाला इन्द्रधनुष पूर्ण आन्तरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण का एक अच्छा उदाहरण है।
प्रकाश का प्रकीर्णन(Scattering of light) :-
प्रकाश जब वायुमंडल से होकर गुजरता है तो रास्ते में पड़ने वाले धूल, धुएँ आदि के कणों से टकराने के कारण इसका प्रकीर्णन हो जाता है। जिस रंग के प्रकाश की तरंग दैध्र्य सबसे कम होती है, उसका प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंग दैध्र्य अधिक होती है, उसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है। आकाश का नीला दिखायी देना प्रकीर्णन के कारण ही होता है क्योंकि बैगनी रंग का तरंग दैध्र्य कम होने के कारण इसका प्रकीर्णन सर्वाधिक होता है। अन्य रंग भी कुछ न कुछ प्रकीर्णित होते हैं। अतः हल्के नीले रंग का मिश्रित रंग आकाश का हो जाता है।  बेनीआहपिनाला 
प्रकीर्णन घटते हुए क्रम में
बैगनी-जामुनी-नीला-पीला नारंगी लाल

परन्तु सूर्य के डूबते या उगते समय प्रकाश अधिक दूरी तय कर हम तक पहुॅचता है। अतः अन्य रंगों का प्रकीर्णन हो जाता है और लाल रंग जिसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है सिर्फ वही बचता है जिससे उस समय सूर्य लाल दिखायी देता है। खतरे के सिग्नलों में लाल रंग का उपयोग इसीलिए करते हैं। क्योंकि लाल रंग का प्रकीर्णन कम होने के कारण यह हमें दूर से ही दिखायी देता है।

प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण (Interference of light Waves) =
व्यतिकरण की खोज थाॅमस यंग नामक वैज्ञानिक ने किया था। व्यतिकरण से प्रकाश के तरंग प्रवृत्ति की पुष्टि होती है। जब किसी स्रोत से समान आवृत्ति तथा समान आयाम की तंरगें चलती हैं तो माध्यम में कुछ बिन्दुओं पर प्रकाश की तीव्रता अधिक तथा कुछ पर कम होती है। इस घटना को व्यतिकरण कहतें हैं। जिन स्थानों पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है। उन बिन्दुओं पर व्यतिकरण को संपोषी व्यतिकरण तथा जिन स्थानों पर प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम होती है, उन स्थानों पर हुए व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहतें हैं। जल की सतह पर फैले हुए मिट्टी के तेल की परतों का रंगीन दिखायी देना तथा साबुन के बुलबुलों का रंगीन दिखायी देना व्यतिकरण के कारण ही होता है।

प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light) = 
 जब प्रकाश की किरणें किसी समतल पृष्ठ पर पड़ती हैं तो इसका अधिकांश भाग पृष्ठ से टकराकर वापस आ जाती है, इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहतें हैं। दर्पण एक अच्छा परावर्तक पृष्ठ होता है। परावर्तन में दर्पण पर पड़ने वाली किरण को आपतित किरण, परावर्तक पृष्ठ के लम्बवत् सीधी रेखा को अभिलम्ब दर्पण के पृष्ठ से टकराकर लौटने वाली किरण को परावर्तित किरण, आपतित किरण तथा अभिलम्ब के बीच कोण को आपतन-कोण तथा अभिलम्ब व परावर्तित किरण के बीच के कोण को परावर्तन कोण कहतें हैं। प्रकाश का परार्वतन दो नियमों के अन्तर्गत होता है।
(a) आपतित किरण, अभिलम्ब व परावर्तित किरण एक ही समतल में होती हैं।
(b) आपतन कोण का मान परावर्तन कोण के बराबर होता है।
प्रकाश तरंगों का ध्रुवण (Polarisation of light)= 
प्रकाश तरंगें विद्युत चुम्बकीय अनुप्रस्थ तरंगे होती हैं। इनमें विद्युत व चुम्बकीय क्षेत्र एक दूसरे के परस्पर लम्बवत् होते हैं व तरंग के संचरण की दिशा में परस्पर लम्बवत कम्पन करतें हैं। जब ये कम्पन तल में स्थिर हर दिशा में अनियमित रूप से वितरित होते हैं तो इस प्रकार की तरंग को अधु्रवित तरंग कहतें हैं। विद्युत वल्ब, ट्यूबलाइट दीपक, आदि से निकलने वाली तरंगे अधु्रवित तरंगें होती है। यदि ये कम्पन सभी दिशाओं में वितरित न होकर एक ही दिशा में हों तो ऐसी प्रकाश तरंगों को घु्रवीय तरंगे कहतें हैं। घु्रवीय प्रकाश उत्पन्न करने के लिए पोलेराइडों का उपयोग किया जाता है। गाड़ियों के हेड लाइटों के प्रकाश की चकाचैंध को रोकने के लिए पोलेराइडों का उपयोग किया जाता है तथा 3 -D फिल्मों को देखने के लिए पोलेराइड ग्लास युक्त चश्मों का प्रयोग किया जाता है।

वस्तुओं का रंग (Colour of object ) =
कोई वस्तु हमें तभी दिखाई देती है जब वह अपने ऊपर पड़ने वाली प्रकाश की किरणों को परावर्तित करती हैं और किसी वस्तु का रंग भी इसी बात पर निर्भर करता है कि वह किस रंग की किरणों को परावर्तित करती है जैसे यदि कोई वस्तु हमें लाल दिखायी दे रही है तो इसका अर्थ है कि वह प्रकाश किरणों में उपस्थित अन्य रंगों को तो अवशेषित कर ले रही है और वह सिर्फ लाल रंग वाले भाग को परावर्तित कर रही है। यदि कोई वस्तु काली दिखायी दे रही है तो इसका मतलब है कि वह अपने ऊपर पड़ने वाली सभी किरणों को अवशोषित कर ले रही है। जबकि किसी वस्तु का सफेद दिखाई देने का अर्थ है कि वह अपने ऊपर पड़ने वाली सभी रंग के प्रकाश की किरणों को परावर्तित कर दे रही है।

दर्पण तीन प्रकार के होतें हैं।
समतल, अवतल तथा उत्तल दर्पण।

 1 – समतल दर्पण (Plane of mirror) =
समतल दर्पण का उपयोग चेहरा देखने के लिए तथा बहुमूर्तिदर्शी जैसे यंत्रों में किया जाता है।
समतल दर्पण से बनने वाला प्रतिबिम्ब आकार में वस्तु के बराबर होता है और आभासी होता है क्योंकि इससे बनने वाले प्रतिबिम्ब को पर्दें पर नहीं लिया जा सकता है। इस दर्पण से बने प्रतिबिम्ब में पाश्र्व उत्क्रमण होता है अर्थात् दर्पण के सामने खडे़ होने पर प्रतिबिम्ब मे शरीर का बांया भाग दाहिने तरफ तथा दायां भाग बायीं तरफ दिखायी पड़ता है। समतल दर्पण से बना वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूर बनता है जितनी दूर दर्पण से वस्तु होती है। समतल दर्पण से अपना पूरा प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई शरीर की लम्बाई की आधी होनी चाहिए। यदि किसी दर्पण की तरफ V वेग से जाया जाये तो प्रतिबिम्ब दुगुने वेग 2V से आता दिखायी पड़ता है। 

2 – अवतल दर्पण (Convave mirror) =
इस दर्पण का एक तल उभरा हुआ होता है, उभरे हुए तल पर पाॅलिस कर दी जाती है। इस दर्पण पर पड़ने वाली किरणें फोकस से होकर वापस लौटती हैं। 
अवतल दर्पण का उपयोग सोलर कुकर, कान व नाक की जाॅच करने वाले यंत्रों में, सर्चलाइट में तथा गाड़ियों के हेडलाइट में करते हैं।

 3 – उत्तल दर्पण (Convex mirror) =
इस दर्पण में उभरे हुए तल को परावर्तक पृष्ठ की तरह प्रयोग करते हैं तथा दबे हुए सतह पर पाॅलिश करते हैं। उत्तल दर्पण से बनने वाले प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटे सीधे तथा आभासी होते हैं। 
उतल दर्पण का उपयोग गाड़ियों में पीछे की वस्तुओं को देखने के लिए बेैक मिरॅर के रूप में करते हैं।
प्रकाश का प्रवर्तन Refraction of light) =
प्रकाश की किरणें जब एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती हैं तो अपने पथ से विचलित हो जाती हैं। प्रकाश का इस प्रकार एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करते समय अपने पथ से विचलित होना ही प्रकाश का अपवर्तन कहलाता है। प्रकाश का अपवर्तन निम्नलिखत नियमों के अन्तर्गत होता है।
(a) आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा अभिलम्ब एक ही समतल में स्थित होते हैं।
(b) किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण के Sine तथा अपवर्तन कोण के Sine पदम का अनुपात एक नियतांक होता है। इसे स्नैल का नियम भी कहतें हैं।

      Sine/Sine = नियतांक = μ (माध्यम का अपवर्तनांक) प्रकाश की किरणें
स्नैल का नियम – इनकेे अनुसार किन्हीं दो माध्यमों के लिए तथा एक ही रंग के प्रकाश के लिए आपतन कोण की ज्या (Sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या (Sine) का अनुपात एक नियतांक होता है।
              Sine i /Sin r = नियतांक

जब सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती हैं तो अभिलम्ब से दूर हट जाती हैं इसी प्रकार विरल माध्यम से सघन माध्यम मे प्रवेश करने पर अभिलम्ब के पास आ जाती हैं। पानी में पड़ी मछली, या कोई वस्तु अपवर्तन के कारण ही ऊपर दिखायी देती है, यदि किसी चम्मच को पानी में आधा बाहर और आधा अन्दर रखा जाये तो चम्मच तिरक्षा दिखायी देता है। यह भी अपवर्तन के कारण ही होता है। इसी तरह तारों का टिमटिमाना भी अपवर्तन के कारण होता है क्योकि वायुमंडल में सघनता भिन्न-भिन्न स्थानो पर अलग-अलग होती है जिससे तारों से आने वाले प्रकाश का अपवर्तन होता रहता है और तारे हमें टिमटिमाते हुए दिखायी देते हैं। यदि कोई वस्तु μ अपवर्तनांक वाले द्रव में रखी है तथा द्रव में आभासी गहराई x¹ मीटर है तो उसकी वास्तविक गहराई होगीः 

वास्तविक गहराई (x) = 
आभासी गहराई (x¹)xअपवर्तनांक μ

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total internal reflection) 
जब प्रकाश की किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती हैं तो अभिलम्ब से दूर हटती जाती हैं। यदि आपतन कोण का मान बढ़ाते जाये तो एक स्थिति ऐसी आती है जिसके लिए परवर्तन कोण का मान 90º हो जाता है। आपतन कोण के इस मान को क्रान्तिक कोण कहतें हैं।  यदि आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से थोड़ा अधिक करदें तो प्रकाश की किरणें विरल माध्यम में न जाकर सघन माध्यम में वापस आ जायेंगी। इस घटना को पूर्ण परावर्तन कहतें हैं। क्रान्तिक कोण का मान जल के लिए 48.5º तथा हीरे के लिए 24.4º होता है।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन के Examples 
हीरे का चमकना 
अप्टिकल फाइबर की कार्यप्रणाली इसी सिद्धान्त के अन्तर्गत आती हैं।
आप्टिल फाइबर का प्रयोग प्रकाशीय तथा विद्युत सिग्नलों को भेजने के लिए मेडिकल व टेलीफोन के क्षेत्र में किया जाता है। 
मृग मरीचिका रेगिस्तानी क्षेत्रों मे गर्मी के दिनों में पानी का भ्रम पैदा करती है। इसका कारण भी पूर्ण आन्तरिक परावर्तन ही है।

लेंन्स (Lenses) :-
लेंस मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं
                अवतल तथा उत्तल।
अवतल लेंस बीच में पतला तथा किनारों पर मोटा होता है। इसे अपसारी लेंस भी कहतें हैं क्योंकि यह अनंत से आने वाली किरणों को फैलाता है 
उत्तल में मोटा तथा किनारों पर पतला होता है। इसे अभिसारी लेंस भी कहतें हैं कयोंकि यह अनन्त से आने वाली किरणों को एक जगह केन्द्रित करता है।
लेंस के दोनो वक्रता केन्द्रों को जोड़ने वाली रेखा को उसका मुख्य अक्ष कहतें हैं।
 लेंस के मध्य बिन्दु को लेंस का प्रकाशिक केन्द्र कहतें हैं। 
अवतल लेंस में जिस बिन्दु से चलने वाली किरणें अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है, उसे लेंस का फोकस कहतें हैं
उत्तल लेंस में मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरणें जिस बिन्दु पर आकर केन्द्रित हो जाती हैं उसे उत्तल लेंस का फोकस कहतें हैं।
प्रकाशिक केन्द्र से फोकस की दूरी को फोकस दूरी कहतें हैं।

लेंसो की क्षमता (Power of Lenses) =
किसी लेंस की क्षमता उसके फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती जब फोकस दूरी मीटर में मापी जाये।

  लेंस की क्षमता (P) = 1/f(मी0 में)

लेंसों की क्षमता का मात्रक डायोप्टर होता है। 
समतल काॅच की क्षमता शून्य होती है।
उत्तल लेंस की क्षमता को धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता को ऋणात्मक डायोप्टर में मापते हैं।
यदि दो लेंसों को आपस में जोड़ दिया जाये तो उसकी क्षमता दोनों लेंसो की क्षमता के योग के बराबर होगी।

लेंस द्वारा आवर्धन=
लेंस द्वारा बने किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब की लम्बाई तथा वस्तु की लम्बाई के अनुपात को रेखीय आवर्धन कहतें हैं।
रेखीय आवर्धन m = प्रतिबिम्ब की लम्बाई / वस्तु की लम्बाई 

मुख्य फोकस = जब किसी दर्पण पर मुख्य अक्ष के समान्तर प्रकाश-किरणें आपतित होती हैं, तब परावर्तन के पश्चात् वे जिस बिन्दु से होकर जाती हैं या जिस बिन्दु से आती हुई प्रतीत होती है उसे दर्पण का मुख्य फोकस कहतें हैं।

क्रांतिक कोण =सघन माध्यम में वह आपतन कोण है जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90ºC होता है। इसका मान दोनों माध्यमों तथा प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है।

पराबैगनी किरण =
द्श्य वर्णपट के बैगनी रंग वाले छोर के बाहर 1000 Aº तरंग दैध्र्य के विकिरण को पराबैगनी विकिरण कहा जाता है।

फोटो मीटर =
यह एक प्रकार का उपकरण है जिसका प्रयोग प्रकाश के दो स्रोतों की प्रदीप्त क्षमता की तुलना में किया जाता है। सामान्यतः रम्फोर्ड फोटोमीटर और बुन्सेन का ग्रीज स्पाॅट फोटोमीटर का प्रयोग किया जाता है।

अवरक्त किरण =
 दृश्य वर्णकपट के दोनों ओर अदृश्य विकिरण रहता है, जो दृष्टि संवेदना उत्पन्न नहीं करता है। दृश्य वर्णपट के लाल छोर के बाहर जो विकिरण रहता है, उसे ही अवरक्त विकिरण कहा जाता है। इसका तंरग दैध्र्य 40000,000 Aº तक होता है।

मुख्य अक्ष =
दर्पण के वक्रता केन्द्र तथा धु्रव अक्ष को मिलाने वाली रेखा को दर्पण का मुख्य अक्ष कहतें हैं।

प्रकाशिक केन्द्र =
लेंस के मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु जिससे होकर जाने वाली प्रकाश किरण अपवर्तन के बाद आपतित किरण के समानान्तर निकलती है, प्रकाशिक केन्द्र कहलाता है।

प्रकाश का वेग एवं रेखीय संचरण (Veloc ity of light and Rectilinear Propagation) =
प्रकाश की चाल सर्वप्रथम फोकाल्ट नामक वैज्ञानिक ने ज्ञात किया और बताया कि निर्वात या वायु में प्रकाश की चाल तीन लाख किलो मीटर प्रति सेकेंड होती है। प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनंाक पर भी निर्भर करती है। किसी माध्यम में प्रकाश की चाल को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है- 
                              v = μc

          जहाॅ v = माध्यम में प्रकाश की चाल।
               μ = माध्यम का अपवर्तनांक।
              c = निर्वात में प्रकाश की चाल।

प्रकाश की तरंगे सीधी रेखा में चलती हैं परन्तु रास्ते में कोई अवरोध पर ये अवरोधों के किनारों पर मुड़ जाती हैं। इस घटना को प्रकाश का विवर्तन कहतें हैं।


Light
Light is that type of energy with the help of which we are able to see the object easily. Now we do not see the objects kept in the dark, as soon as the bulb or candle burns, it produces light and this light is incident on the object i.e. the light which is produced by the bulb or candle first falls on the object and the object reflected from our eyes
Light is a type of energy that senses the eyes and gives knowledge of the color and form of objects etc. In the context of light, Newton first propounded the 'Particle Theory'. According to him, light is made up of small particles, but later Huygens said in his theory that light travels in the form of waves, which Young confirmed by his interference experiments but photoelectric effect could not be explained by him. Can. Later in 1905, Einstein told that light is a set of small bundles of energy. These bundles are called photons. In 1973, Maxwell said that light is a type of electromagnetic waves, but the photoelectric effect could not be explained even by that.
In this way light exhibits two types of properties.

In today's time, some properties of light like diffraction, interference polarization etc. are explained on the basis of wave nature and some properties like photoelectric effect are explained on the basis of Einstein's theory of light.

Illuminated Objects:- Those objects which themselves produce light. Like sun, stars, electric valve etc.

Non-luminous objects:- Do not produce light by themselves. Like tables, chairs, walls, moon etc.

Dispersion of light by Prism :-
The rays of sunlight falling on a prism split into seven colors. The group of colors so obtained is called spectrum. The sequence obtained from top to bottom when the spectrum is taken on a screen is red, orange, yellow, green, blue, purple and violet. Violet color is deflected the maximum and red color has the least deflection by the prism because red color light has the longest wavelength and violet color has the shortest wavelength. The rainbow seen in the sky on rainy days is a good example of color dispersion by total internal reflection and refraction.

Scattering of light :-
When light passes through the atmosphere, it gets scattered due to collision with the particles of dust, smoke etc. The color of light which has the shortest wavelength, has the highest scattering and the color of the light which has the longest wavelength has the least scattering. The blue appearance of the sky is due to scattering because violet color has the highest scattering due to its short wavelength. Other colors are also scattered to some extent. Therefore, the mixed color of light blue becomes the color of the sky. beniahpinala
 scattering in descending order
violet-purple-blue-yellow orange red

But when the sun sets or rises, the light reaches us by traveling a long distance. Therefore, other colors get scattered and the red color which has the least scattering remains only that which makes the Sun appear red at that time. That's why red color is used in danger signals. Because due to less scattering of red color, it is visible to us from a distance.

Interference of light waves =
Interference was discovered by a scientist named Thomas Young. Interference confirms the wave nature of light. When waves of the same frequency and same amplitude travel from a source, the intensity of light is high at some points in the medium and less at others. This phenomenon is called interference. The places where the intensity of light is maximum. Interference at those points is called constructive interference and at those places where the intensity of light is minimum, the interference at those places is called destructive interference. Colored appearance of layers of kerosene spread on the surface of water and colored appearance of soap bubbles is due to interference.

Reflection of light =
When the rays of light fall on a plane surface, most of it comes back after hitting the surface, this phenomenon is called reflection of light. A mirror is a good reflecting surface. In reflection, the ray falling on the mirror is the incident ray, the normal to a straight line perpendicular to the reflecting surface, the reflected ray hitting the mirror surface, the angle between the incident ray and the normal and the angle of incidence between the normal and the reflected ray. The angle is called the angle of reflection. Reflection of light occurs under two laws.

 (a) The incident ray, the normal and the reflected ray lie in the same plane.
 (b) The angle of incidence is equal to the angle of reflection.

Polarization of light =
Light waves are electromagnetic transverse waves. In these, the electric and magnetic fields are mutually perpendicular to each other and vibrate perpendicular to the direction of propagation of the wave. When these vibrations are randomly distributed in every direction stationary in the plane, then this type of wave is called non-polarized wave. The waves emanating from electric bulb, tube light lamp, etc. are non-polarized waves. If these vibrations are not distributed in all directions but in one direction, then such light waves are called polar waves. Polaroids are used to produce polar light. Polaroids are used to block the glare of vehicle headlights, and Polaroid glasses are used to view 3-D movies.

Color of object =
An object is visible to us only when it reflects the rays of light falling on it and the color of an object also depends on what color rays it reflects like if an object appears red to us It means that it is absorbing the other colors present in the light rays and it is reflecting only the red part. If an object appears black, it means that it is absorbing all the rays falling on it. Whereas an object appears white means that it is reflecting all the rays of light falling on it.

There are three types of mirrors.
Plane, concave and convex mirrors.

1 – Plane of mirror =
Plane mirrors are used for face viewing and in instruments like kaleidoscopes.

The image formed by a plane mirror is equal in size to the object and is virtual because the image formed by it cannot be taken on the screen. In the image made of this mirror, there is a lateral reversal, that is, when standing in front of the mirror, the left side of the body is visible on the right side and the right side on the left side in the image. The image of the object formed by a plane mirror is formed behind the mirror as far as the object is from the mirror. To see your full image through a plane mirror, the length of the mirror should be half the length of the body. If we move towards a mirror with a velocity V, then the image appears to come with twice the velocity 2V.

2 – Convave mirror =
This mirror has a raised plane, which is polished on the raised plane. The rays falling on this mirror return through the focus.
Concave mirrors are used in solar cookers, ear and nose testing devices, in searchlights and in vehicle headlights.

3 – Convex mirror =
In this mirror, the raised plane is used as the reflecting surface and polished on the buried surface. The images formed by a convex mirror are smaller than the object, erect and virtual.
Convex mirrors are used in vehicles as a back mirror to see the objects behind.

Reflection of light) =
When light rays enter from one medium to another, they deviate from their path. The deviation of light from its path while entering from one medium to another is called refraction of light. Refraction of light takes place under the following laws.

 (a) The incident ray, the refracted ray and the normal lie in the same plane.

 (b) The ratio of the sine of the angle of incidence and the sine term of the angle of refraction for any two mediums is a constant. It is also called Snell's law.

Sine/Sine = constant = μ (refractive index of the medium) rays of light

Snell's law – According to them, the ratio of the sine of the angle of incidence and the sine of the angle of refraction for any two medium and light of the same color is a constant.

Sine i /Sin r = constant

When entering a rarer medium from a denser medium, it moves away from the normal, similarly when entering a denser medium from a rarer medium, it comes near the normal. A fish lying in water, or any object, is visible above only because of refraction, if a spoon is kept half outside and half in the water, then the spoon appears oblique. This is also due to refraction. Similarly, the twinkling of stars is also due to refraction because the concentration in the atmosphere is different at different places, due to which the light coming from the stars keeps on refracting and the stars appear to us to twinkle. If an object is placed in a liquid of refractive index μ and the apparent depth in the liquid is x¹ meters, then its actual depth will be:

Actual depth (x) =
Virtual depth (x¹)xrefractive index μ

Total internal reflection
When light rays enter from a denser medium to a rarer medium, they move away from the normal. If the value of the angle of incidence is increased, then a situation comes for which the value of angle of incidence becomes 90º. This value of angle of incidence is called critical angle. If the angle of incidence is slightly higher than the critical angle, then the rays of light will not go to the rarer medium and return to the denser medium. This phenomenon is called total reflection. The critical angle is 48.5º for water and 24.4º for diamond.

Examples of total internal reflection
diamond shine
The working of optical fiber comes under this principle.
Optical fiber is used in the medical and telephone fields to transmit optical and electrical signals.
The deer mariachika creates the illusion of water in the desert areas during the hot summer days. The reason for this is also total internal reflection.


Lenses :-
There are mainly two types of lenses
Concave and convex.
A concave lens is thinner in the middle and thicker at the edges. It is also called diverging lens because it spreads the rays coming from infinity.

Thick in convex and thin at the edges. It is also called a converging lens because it focuses the rays coming from infinity in one place.

The line joining the two centers of curvature of a lens is called its principal axis.

The mid point of the lens is called the optical center of the lens.

In a concave lens, the point from which the rays after refraction become parallel to the principal axis is called the focus of the lens.

The point at which the rays coming parallel to the principal axis in a convex lens get focused is called the focus of the convex lens.

The distance of the focus from the optical center is called the focus distance.

Power of Lenses =
The power of a lens is inversely proportional to its focal length when the focal length is measured in meters.

Power of lens (P) = 1/f(in m)

The unit of power of lenses is diopter.
The capacity of a plane glass is zero.
The power of a convex lens is measured in positive and the power of a concave lens in negative diopters.
If two lenses are joined together, then its power will be equal to the sum of the power of both the lenses.


Magnification by lens =
The ratio of the length of the image formed by the lens to the length of the object is called the linear magnification.

Linear magnification m = length of image / length of object

When light-rays are incident parallel to the principal axis on a mirror, then after reflection they pass through or the point from which they appear to be coming is called principal focus of the mirror.

Critical angle = is the angle of incidence in a dense medium for which the angle of refraction in a rare medium is 90ºC. Its value depends on both the medium and the color of the light.

Ultraviolet ray =
The radiation of wavelength 1000 Aº outside the violet colored end of the visible spectrum is called ultraviolet radiation.

photo meter =
It is a type of device used to compare the illumination power of two sources of light. Rumford photometer and Bunsen's grease spot photometer are commonly used.

infrared ray =
Invisible radiation is present on either side of the visual sclera, which does not produce visual sensation. The radiation that lies outside the red end of the visible spectrum is called infrared radiation. Its wavelength is up to 40000,000 Aº.

main axis =
The line joining the center of curvature of the mirror and the pole axis is called the principal axis of the mirror.

optical center =
The point on the principal axis of the lens through which the passing ray of light emerges parallel to the incident ray after refraction is called the optical centre.

Velocity of light and Rectilinear Propagation =
The speed of light was first discovered by a scientist named Foucault and told that the speed of light in vacuum or air is three lakh kilometer per second. The speed of light also depends on the refractive index of the medium. The speed of light in a medium can be found by the following formula:
                     v = μc
 where v = speed of light in the medium.
 μ = refractive index of the medium.
 c = speed of light in vacuum.
Waves of light travel in a straight line but at any obstacle in the way, they bend at the edges of the obstacles. This phenomenon is called diffraction of light.

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