Human heart and structure
हृदय (heart)
हृदय या दिल एक पेशीय (Muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (Vertebrate) का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है, जो (लगभग 66 वर्ष) एक जीवन काल में 2.5 बिलियन बार धड़कता है। मनुष्य का दिल 1 मिनट मे 70 मिली लीटर रक्त पम्प करता है,1 दिन मे 7600 लीटर(2000 gallons) तथा अपने जीवन काल मे 200 मिलियन लीटर रक्त पम्प करता है!इसका भार औसतन महिलाओं में 250 से 300 ग्राम और पुरुषों में 300 से 350 ग्राम होता है।
मानव हृदय की संरचना (Human heart structure)
परिसंचरण के प्रकार
फुफ्फुसीय परिसंचरण परिसंचरण का एक हिस्सा है जो हृदय से दूर फेफड़ों तक ऑक्सीजन रहित रक्त ले जाने और फिर ऑक्सीजन युक्त रक्त को हृदय में वापस लाने के लिए जिम्मेदार होता है।
प्रणालीगत परिसंचरण परिसंचरण का एक और हिस्सा है जहां ऑक्सीजन युक्त रक्त हृदय से शरीर के प्रत्येक अंग और ऊतक में पंप किया जाता है, और ऑक्सीजन रहित रक्त फिर से हृदय में वापस आ जाता है।
अब, हृदय स्वयं एक मांसपेशी है और इसलिए, उसे ऑक्सीजन युक्त रक्त की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है। यह वह जगह है जहां एक अन्य प्रकार का परिसंचरण काम में आता है, कोरोनरी परिसंचरण।
कोरोनरी परिसंचरण परिसंचरण का एक अनिवार्य हिस्सा है, जहां हृदय को ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति की जाती है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हृदय पूरे शरीर में रक्त की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार है। मस्तिष्क जैसे अंगों को कार्यक्षमता सुनिश्चित करने के लिए ताजा, ऑक्सीजन युक्त रक्त के निरंतर प्रवाह की आवश्यकता होती है।
रक्त वाहिकाएं
बंद संचार प्रणाली वाले जीवों में, रक्त विभिन्न आकारों के जहाजों के भीतर बहता है। मनुष्यों सहित सभी कशेरुकी जंतुओं में इस प्रकार का परिसंचरण होता है। हृदय की बाहरी संरचना में कई रक्त वाहिकाएं होती हैं जो एक नेटवर्क बनाती हैं, जिसमें संरचना के भीतर से अन्य प्रमुख वाहिकाएं निकलती हैं। रक्त वाहिकाओं में आमतौर पर निम्नलिखित शामिल होते हैं:
नसें अवर और बेहतर वेना कावा के माध्यम से हृदय को ऑक्सीजन रहित रक्त की आपूर्ति करती हैं, और यह अंततः दाहिने आलिंद में बह जाती है।
केशिकाएं छोटी, ट्यूब जैसी वाहिकाएं होती हैं जो धमनियों से शिराओं के बीच एक नेटवर्क बनाती हैं।
धमनियां पेशीय-दीवार वाली नलिकाएं होती हैं जो मुख्य रूप से हृदय से दूर शरीर के अन्य सभी भागों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करने में शामिल होती हैं। महाधमनी धमनियों में सबसे बड़ी है और यह पूरे शरीर में विभिन्न छोटी धमनियों में शाखा करती है।
हृदय की कार्य-विधि
हृदय एक पम्प की तरह कार्य करता है।
यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को पम्प करता है।
हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के ज़रिए मिलता है जो कोरोनरी आर्टरीज़ द्वारा प्रदान किया जाता है।
हृदय दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं।
यह एक दिन में लगभग 1 लाख बार धड़कता है एवं एक मिनट में 60-90 बार।
हृदय का दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है।
चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं।
रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है।
मानव हृदय की संरचना (Human heart structure)
यह शरीर के वक्ष भाग के वक्ष भाग में फेफडो के बीच स्थित होता है।
यही रूधिर वाहिनियॉ रक्त को पूरे शरीर में ले जाती है। तथा फिर इसी से वापस लेकर आती है। हृदय एक गुलाबी रंग का शंक्वाकार अन्दर से खोखला मांसल अंग होता है सामान्यत: मनुष्य शरीर में रक्त की मात्रा 5-6 लीटर होती है।
मानव शारीरिक भाग का 20वॉ भाग रक्त होता है। रक्त पूरे शरीर में दौडता रहता है। परिसंचरण तत्रं में मुख्य रूप से हृदयए धमनी व शिरा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मानव हृदय अन्य स्तनधारियों की तरह चार कक्षीय होता है .
हमारा हृदय एक पम्पिंग मशीन की तरह कार्य करता है जो अनवरत अशु़द्ध रक्त को फेफडो में शुद्ध करने तथा फिर शुद्ध रक्त को पूरे शरीर में भेजता है।
ऊपर के कक्ष अलिंद (Atrium) कहलाते हैं जबकि नीचे के कक्ष निलय (Ventricle) कहलाते हैं एवं कोरोनरी-सल्कस (Coronary sulcus) द्वारा अलग रहते हैं।
हृदय भित्ति की तीन परते होता है
पेरिकार्डियम
मायोकार्डियम
एण्डोकार्डियम
1. पेरिकार्डियम
पेरिकार्डियम दो कोषो से मिलकर बना है। बाहरी कोष तन्तुमय ऊतकों से निर्मित होता है तथा आन्तरिक रूप से सीरमी कला की दोहरी परत की निरन्तरता में पाया जाता है।
बाहरी तन्तुमय को ऊपर की ओर हृदय की बडी रक्त व लिशओं के टुनिका एड्वेन्टिशिया केद साथ निरन्तरता में होता है तथा नाचे की ओर डायाक्राम में लगा हुआ होता है।
सीरमी कला की बाहरी परत जिसे’’ पार्शिवक पेरिफार्शियम कहा जाता है। यह तन्तुमय कोष को आस्तरित करने का कार्य करती है।
अन्तरोगी पेरिकार्डिम हृदय पेशी से चिपटी हुयी होती है तथा पार्शिवक पेरिकार्डियम की निरन्तरता मे होती है।
2. मायोकार्डियम
मायोकार्डियम एक विशिष्ट प्रकार की हृदयपेशी से निर्मित होती है। यह पेशी केवल हृदय में ही पायी जाती है। इसमें दो तन्तु पाये जाते है। वे अनेच्छिक वर्ग के होते है।
मायोकार्डियम की मोटाई सब जगह एक जैसी नही होती है। शिखर भाग पर यह सर्वाधिक मोटी तथा आधार की ओर पतली होती है जबकि बाये निलय में अपेक्षाकृत मोटी होती है क्योंकि बॅाये निलय का कार्यभार अघिक होता है। मायोकार्डियम आलिन्दों में बहुत ही पतली होती है।
3. एण्डोकार्डियम
हृदय भित्ति की सबसे भीतरी परत एण्डाकार्डियम इसका निर्माण चपटी कला कोशिकाओं से होता है। इस परत से हृदय के चारों कक्ष एवं कपाट आच्छदित रहते है।
हृदय के कोष्ठक
मानव हृदय दायें एवं बायें भागों मे बॅटा हुआ होता है। यह विभाजनपरक पेशी पर (septum)के द्वारा होता है। ये दायें एवं बॉये भाग दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अलग होते है।
हृदय के दायें भाग का संबंध अशुद्ध से तथा बायें भाग का संमंध शुद्ध रक्त के लेन-देन से होता है दायॉ एवं बायॉ भाग फिर से अनुप्रस्थ पर से विभक्त होता है जिससे एक ऊपर एवं नीचे का भाग बनता है। इस प्रकार हृदय का समस्त आन्तरिक भाग चार कक्षो में विभाजित हो जाता है।
बायीं ओर के दोनो कक्ष अर्थात बायॉ आलिन्द एवं बायीं निलय एक छिद्र द्वारा आपस मे सम्बद्ध होते है।
ठीक इसी प्रकार की व्यवस्था बॉयी तरफ होती है अर्थात् दायॉ आलिन्द एवं दायॉ निचल भी यह एक छिद्र द्वारा आपस मे सम्बद्ध रहते है इन छिद्रो पर वाल्व पाये जाते है। ये वातव इस प्रकार से लगे हुये होते है कि रक्त मात्र आलिन्द मे से निलय में तो जा सकता है किन्तु वापस लौट कर नही आ सकता।
रक्त को लाने एवं ले जाने वाली रक्त नलिकायें भी अपने से संबन्धित कोष्टक (कक्ष) में ही खुलती है।
हृदय के निम्न चार कोष्ठक होते हैं
दायॉ आलिंद यह दायी ओर ऊपरी कक्ष
दायॉ निलय यह दायी ओर का निचला कक्ष
बायॉ आलिन्द यह बॉयी ओर का ऊपरी कक्ष।
बायॉ निलय यह बॉयी ओर का नीचे कक्ष।
1. दायॉ आलिन्द
इस कक्ष की शिलिया एवं पतली होती है क्योंकि इसे रक्त को पम्प करने का काम ज्यादा नही करना होता है। इस कक्ष का मुख्य कार्य केवल खून को गृहण करने का है।
हृदय के इय भाग मे सम्पूर्ण शरीर का ऑक्सीजन रहित अशुद्ध रक्त आकर इकट्ठा होता है। उध्र्वमहाशिरा शरीर के ऊपरी हिस्से से तथा निम्न महाशिरा निचले हिस्से से अशुद्ध रक्त को दॉयें आलिन्द में पहुॅचाने का कार्य करती है।
2. दायॉ निलय
हृदय का दूसरा कक्ष है दायॉ निलय होता हैं दायां निलय में अशुद्ध रक्त के पहुॅचने बाद के यह एट्रियॉ वेन्ट्रिकल छिद्र से होते हुए दायें वेन्ट्रिकल में आता है और वहॉ से फुफ्कुसीय धमनियों के द्वारा फेफड़ो में शुद्ध होने के लिए चला जाता है।
Note फुफ्कुसीय धमनी के अलावा अन्य सभी धमनियो मे शुद्ध रक्त ही प्रभावित होता है। दायें निलय की शिरियॉ दॅाये एट्रियम की तुलना मे अधिक मोटी होती है क्योंकि इसे रक्त को पम्प करने का कार्य अपेक्षाकृत अधिक करना पडता है।
3. बायॉ आलिन्द
बायॉ आलिन्द हृदय की बायें भाग का ऊपर वाला कक्ष है। आकार की दृष्टि से चर दायें एट्रियम से थोड़ा से छोटा होता है।
बायॉ आलिन्द मे चार फुफ्कुसीय शिरायें खुलकर शुद्ध रक्त को बायें एट्रियम तक ले जाने का कार्य करती है।
दायें एट्रियम की तुलना में इसकी भित्तियॉ भी थोड़ी मोटी होती है।
4. बायॉ निलय
इसकी भित्तियॉ शेष सभी कक्षो की अपेक्षा मोटी होती है। इसमें महाधमनी नामक एक छिद्र होता है, जिससे महाधमनी निकलकर शरीर के विविध भागों मे रक्तापूर्ति का कार्य करती है।हृदय का चौथा कक्ष बायॉ निलय है। यह भाग का निचला तथा हृदय का सभी कक्षो में सर्वाधिक बड़ा कक्ष है।
जैसे की बायें एट्रियम मे संकुचन होता है शुद्ध रक्त बायें वेन्ट्रिकल में आ जाता है। बायें वेन्ट्रिकल के संकुचित होते ही शुद्ध रक्त महाधमनी के छिद्र को खोल देता है और उसी मे से होकर वह प्रभावित होता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि बायॉ निलय शरीर के सभी भागो में शुद्ध रक्त पहुचाने मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
हृदय के कपाट
हृदय मे रक्त प्रवाह गलत दिशा मे न हो सके इस हेतु ही कपाठ या वाल्व होते है।
हृदय मे मुख्य रूप से चार वाल्व होते है।
टाइकस्पिड वाल्व
माइटल वाल्व
पल्मोनरी वाल्व
एऑटिकल वाल्व
1. टाइकस्पिड वाल्व
दायें आलिन्द तथा बायें निलय के बीच में स्थित छेद , जिसमे ढॅाचा एट्रियोवोन्ट्रिकुलर छिद्र कहा जाता है, उसके वाल्व को ट्राइकस्पिड या जिकपर्दी वाल्व कहते है। इस वाल्व मे तीन त्रिकोण के आकार वाले कास्पस पाये जाते है।
वाल्व के इन अस्पस का एट्रियेवेन्द्रिकुलर छेद के ऊपर पूरी तरह से नियंत्रण होता है आलिन्द मे संकुचन के कारण खून कस्पस को धक्का देता है और वेन्ट्रिकल मे पहॅुचता हैं।
इस प्रक्रिया के ठीक बाद ही कस्पस बन्द हो जाते है और ठीक इसी क्षण क्षपिलरी केशियों में संकुचन हाने के करण ये कांर्डी टेन्डिनी पर खिंचाव डालती है, परिणामस्वरूप कस्पस आलिन्द में नही अकेले जाते है और खून वापस नहीं लौट पाता है।
2. माइटल वाल्व
बायें आलिन्द तथा दॉयें वेन्ट्रिकल के मध्य के बॉयें एट्रियोवेन्ट्रिकुलर छिद्र का कपाट द्विकपर्दी कपाट या माइट्रल वाल्व या बाइकस्पिटु वाल्व कहलाता है।
इसमे दो कस्पस (cusps) होने के कारण ही इसे द्विकपर्दी कपाट करा जाता है। इसकी संरचना भी ट्राइकस्पिटु वाल्व के समान ही होती है। इसका कार्य है – बायें वेन्ट्रिकल के संकुचित होने पर रक्त को बायें एट्रियम मे वापस न जाने देना।
3. पल्मोनरी वाल्व
इसमें तीन अर्द्धचन्द्राकार कस्पस होते हैं
दायें वेन्ट्रिकल एवं फुफ्कुसीय धमनी के बीच का वाल्व पल्मोनरी वाल्व या फुफ्कुसीय कपाट कहलाता है। इसे अर्द्धचन्द्राकार वाल्व के साथ जाना जाता है
4. एऑटिकल वाल्व
महाधमनी कपाट बायें वेन्ट्रिकल एवं महाधमनी के मध्य स्थित होता है। रचना तथा कार्य की दृष्टि से यह पल्योनवरी वाल्व के समान ही होता है।
विकास
मानव भ्रूणीय (Embryon) ह्रदय गर्भाधान के लगभग 23 दिन के बाद धडकना शुरू करता है, या आखिरी सामान्य माहवारी (menstrual period) (एल एम पी) के पांचवें सप्ताह के बाद धडकना शुरू करता है, इसी दिनांक को गर्भावस्था के दिनों की गणना के लिए काम में लिया जाता है। यह अज्ञात है कि मानव भ्रूण में पहले 21 दिनों तक एक क्रियात्मक ह्रदय की अनुपस्थिति में रक्त का प्रवाह कैसे होता है। मानव ह्रदय माँ के ह्रदय के धड़कन की दर, लगभग 75-80 बार प्रति मिनट की दर से धड़कने लगता है।
भ्रूण हृदय दर (EHR) अब धड़कन के पहले माह के लिए अस्तर के साथ त्वरित होने लगती है, जो प्रारंभिक 7 वें सप्ताह के दौरान 165-185 धड़कन प्रति मिनट पहुँच जाती है। (प्रारंभिक 9 वां सप्ताह LMP के बाद) यह त्वरण लगभग 3.3 धड़कन प्रति मिनट प्रति दिन होता है। या 10 धड़कन प्रति मिनट प्रति तीन दिन होता है, पहले माह में 100 धड़कन प्रति मिनट की वृद्धि होती है। LMP के बाद लगभग 9.1 सप्ताह पर, LMP के बाद 15 वें सप्ताह के दौरान यह लगभग 152 धड़कन प्रति मिनट तक कम या संदमित (+/-25 धड़कन प्रति मिनट) हो जाती है। 15 वें सप्ताह के बाद संदमन धीमा हो जाता है और यह औसतन 145 धड़कन (+/-25 धड़कन प्रति मिनट) प्रति मिनट की दर पर पहुँच जाता है। प्रतिगमन सूत्र जो भ्रूण के 25 मिली मीटर तक पहुँचने से पहले जो त्वरण का वर्णन करता है
गर्भाधान (conception) के 21 दिनों पर मानव ह्रदय प्रति मिनट 70 से 80 बार धडकना शुरू कर देता है, धड़कन के पहले माह के लिए अस्तरित रूप से त्वरित होने लगता है।
In English
Heart
The heart or hiya or heart is a muscular organ, which in all vertebrates, through rhythmic contractions, carries the flow of blood to all parts of the body. The heart of vertebrates is made up of cardiac muscle, which is an involuntary muscle tissue, which is found only in the heart organ.
Heart or heart is a muscular organ, which of all vertebrates is made up of cardiac muscle, which is an involuntary muscle tissue, which is found only in the heart organ . The average human heart beats 72 times a minute, which (about 66 years) beats 2.5 billion times in a lifetime. The human heart pumps 70 milliliters of blood in 1 minute, 7600 liters (2000 gallons) in a day and 200 million liters of blood in its lifetime. Its weight is 250 to 300 grams in women and 300 -350 grams.
The heart is located in the middle of the lungs, slightly to the left.
type of circulation
Pulmonary circulation is a part of circulation that is responsible for carrying deoxygenated blood away from the heart to the lungs and then returning oxygenated blood back to the heart.
Systemic circulation is another part of circulation where oxygenated blood is pumped from the heart to every organ and tissue in the body, and deoxygenated blood is returned to the heart again.
Now, the heart itself is a muscle and hence, it needs a constant supply of oxygenated blood. This is where another type of circulation comes into play, the coronary circulation.
Coronary circulation is an essential part of circulation, where oxygenated blood is supplied to the heart. This is important because the heart is responsible for supplying blood throughout the body.
In addition, organs such as the brain require a constant flow of fresh, oxygenated blood to ensure functionality.
blood vessels
In organisms with a closed circulatory system, blood flows within vessels of various sizes. This type of circulation occurs in all vertebrates including humans. The outer structure of the heart consists of many blood vessels that form a network, with other major vessels emerging from within the structure. Blood vessels usually include the following:
The veins supply deoxygenated blood to the heart through the inferior and superior vena cava, and it eventually drains into the right atrium.
Capillaries are small, tube-like vessels that form a network between arteries to veins.
Arteries are muscular-walled tubes that are mainly involved in supplying oxygenated blood away from the heart to all other parts of the body. The aorta is the largest of the arteries and it branches into various smaller arteries throughout the body.
functioning of the heart
The heart acts like a pump.
It beats about 1 lakh times in a day and 60-90 times in a minute.
It pumps blood throughout the body with every beat.
The heart gets its nutrition and oxygen through blood that is provided by the coronary arteries.
The heart is divided into two parts, the right and the left. There are two chambers (named atrium and ventricle) on each side of the heart, right and left. Altogether there are four chambers in the heart.
The right side of the heart receives contaminated blood from the body and pumps it to the lungs.
The blood is filtered into the lungs and returned to the left side of the heart from where it is pumped back into the body.
Four valves, two on the left (mitral and aortic) and two on the right side (pulmonary and tricuspid) of the heart, act as one-way gates to direct the flow of blood.
Human heart structure
The heart is a pinkish conical, hollow fleshy organ from the inside, it is located between the lungs in the thoracic part of the thoracic part of the body.
These blood vessels carry blood throughout the body. And then brings it back from this. Normally, the amount of blood in the human body is 5-6 liters.
The 20th part of the human body is blood. Blood keeps running throughout the body. Mainly the heart, arteries and veins play an important role in the circulatory system.
Our heart works like a pumping machine which continuously pumps the impure blood to the lungs and then sends the pure blood to the whole body.
The human heart is four chambered like that of other mammals.
The upper chambers are called atrium while the lower chambers are called ventricles and are separated by coronary sulcus.
heart wall has three layers
pericardium
myocardium
endocardium
1. Pericardium
The pericardium is made up of two cells. The outer corpuscle is made up of fibrous tissues and is found internally in continuation of a double layer of serous membrane.
The outer fibrous is in continuation with the large blood of the heart and the tunica adventitia of the corpuscles upstream and is engaged in the diacrame towards the dance.
The outer layer of the serous artefact is called the lateral periphysium. It acts as a lining of the fibrous fundus.
The interstitial pericardium is attached to the cardiac muscle and is in continuation of the lateral pericardium.
2. myocardium
The myocardium is made up of a specific type of heart muscle. This muscle is found only in the heart. Two fibers are found in it. They belong to the voluntary category.
The thickness of the myocardium is not the same everywhere. It is thickest at the apex and thinner towards the base while relatively thicker in the left ventricle as the workload of the left ventricle is more. The myocardium is very thin in the atria.
3. endocardium
Endocardium, the innermost layer of the heart wall, is made up of flattened articular cells. The four chambers and valves of the heart are covered by this layer.
heart brackets
Human heart is divided into right and left parts. This is done through the septum on the dividing muscle. Both these right and left parts are completely separate from each other.
The right side of the heart is related to the impure and the left part is related to the exchange of pure blood, the right and left part again divides on the transverse, forming an upper and lower part. In this way the entire inner part of the heart gets divided into four chambers.
Both the chambers on the left side i.e. left atrium and left ventricle are connected with each other through an opening.
Exactly the same type of arrangement is on the left side i.e. right atrium and right lower side, they are also connected with each other by a hole, valves are found on these holes. These vatavas are engaged in such a way that the blood can go only from the atrium to the ventricles but cannot come back.
The blood vessels carrying and carrying blood also open in their respective cell (chamber).
Heart has the following four brackets
right atrium this right upper chamber
right ventricle
Left atrium This is the upper room on the left side.
Left ventricle This is the lower chamber of the left side.
1. right atrium
In this part of the heart, the deoxygenated impure blood of the whole body comes and collects. Udhrva mahashira performs the function of carrying impure blood from the upper part of the body and inferior mahavira from the lower part to the right atrium.
The cilia of this chamber are thinner because it does not have to do much of the work of pumping blood. The main function of this chamber is to receive only blood.
2. right ventricle
The second chamber of the heart is the right ventricle, after the impure blood reaches the right ventricle, it enters the right ventricle through the atria ventricle and from there it goes through the pulmonary arteries to the lungs to be purified.
Note except the pulmonary artery, only pure blood is affected in all other arteries. The veins of the right ventricle are thicker than those of the right atrium because it has to do more of the work of pumping blood.
3. Bio Atrium
The left atrium is the upper left part of the heart. In terms of size, the variable is slightly smaller than the right atrium.
Its walls are also slightly thicker than the right atrium.
Four pulmonary veins open in the left atrium to carry pure blood to the left atrium.
4. left ventricle
The fourth chamber of the heart is the left ventricle. It is the lower part and the largest chamber of all the chambers of the heart. Its walls are thicker than all the other chambers. In this there is a hole called aorta, from which the aorta comes out and serves as a blood supply to various parts of the body.
As the left atrium contracts, pure blood flows into the left ventricle. As the left ventricle is compressed, the pure blood opens the opening of the aorta and through it it is affected.
It is thus clear that the left ventricle plays the most important role in delivering pure blood to all parts of the body.
heart valves
There are valves or valves to prevent blood flow in the wrong direction in the heart.
There are mainly four valves in the heart.
ticspeed valve
mitral valve
pulmonary valve
autical valve
1. Tycospeed Valve
The hole located between the right atrium and the left ventricle, in which the structure is called the atrioventricular orifice, its valve is called the tricuspid or zircoid valve. Three triangle shaped caspases are found in this valve.
These spasms of valves have complete control over the atrioventricular orifices. Due to the contraction in the atrial, the blood pushes the caspases and reaches the ventricles.
Immediately after this process, the caspase is closed and at this very moment due to contraction of capillary capillaries, it exerts a strain on the cardi tendini, as a result the caspase does not go alone into the atrium and blood is not able to return back.
2. Mital valve
The valve of the left atrioventricular orifice between the left atrium and the right ventricle is called the bicuspid valve or mitral valve or bicuspid valve.
Due to having two cusps in it, it is called bicuspid valve. Its structure is also similar to that of the tricuspid valve. Its function is to prevent blood from returning to the left atrium when the left ventricle is compressed.
3. Pulmonary Valve
The valve between the right ventricle and the pulmonary artery is called the pulmonary valve or pulmonary valve. It is known with a crescent valve because it has three crescent shaped cusps.
4. Auticular Valve
The aortic valve is located between the left ventricle and the aorta. In terms of composition and function, it is similar to the pylonvari valve.
Heart Development
At 21 days after conception, the human heart starts beating 70 to 80 times per minute, accelerating intermittently for the first month after beating.
The human embryonic heart begins to beat approximately 23 days after conception, or after the fifth week of the last normal menstrual period (LMP), the same date as the count of gestational days. is employed for. It is unknown how blood flows in the human fetus for the first 21 days in the absence of a functioning heart. The human heart starts beating at the rate of the mother's heartbeat, about 75-80 times per minute.
Fetal heart rate (EHR) now begins to accelerate along the lining for the first month of beating, reaching 165–185 beats per minute during the early 7th week. (Initial 9th week after LMP) This acceleration is approximately 3.3 beats per minute per day. or 10 beats per minute every three days, increasing to 100 beats per minute in the first month. At approximately 9.1 weeks after LMP, it decreases or is suppressed (+/-25 beats per minute) by about 152 beats per minute during the 15th week after LMP. After the 15th week, suppression slows and reaches an average rate of 145 beats (+/-25 beats per minute) per minute. Regression formula that describes the acceleration before the fetus reaches 25 mm.
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